24-September-2018 कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन संबोधित करते हुए

ALL INDIA CONGRESS COMMITTEE

24, AKBAR ROAD, NEW DELHI

COMMUNICATION DEPARTMENT

डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि क्योंकि सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर आपको ना मिला है, ना मिलने वाला है, स्पिन बौलिंग मिलेगी, आपको बहकाने और बरगलाने के वक्तव्य मिलेंगे। हाँ, आपको प्रचुर मात्रा में कांग्रेस के बारे में अपमान के शब्द मिलेंगे और हम पूरी तरह से तैयार है, उन अपमान के शब्दों को झेलने के लिए, परंतु कम से कम साथ में हमें कुछ तथ्य भी दीजिए। चार मुद्दों से मैं आपको संक्षिप्त में अवगत करवाऊँगा। पहली बात कि आप ये पाँच या छह तारीखें नोट कर लें, 25 मार्च, 2015 को माननीय प्रधानमंत्री के पेरिस पहुंचने के 15 दिन पहले, जो कि उच्च पदाधिकारी हैं, दसॉल्ट के CEO Éric Trapper कहते हैं कि हमारा HAL से करारनामा बहुत एडवांस स्टेज पर है। उनका कोटेशन मैं आपको दे रहा हूं। ये मेरे शब्द नहीं हैं। उन्होंने कहा अभी निकट भविष्य में हस्ताक्षर होने वाले हैं।

8 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री के मुलाकात के दो दिन पहले फॉरन सेक्रेटरी ऑफ इंडिया, उस क्षेत्र के सबसे बड़े पदाधिकारी कहते हैं कि राफेल टेबल पर नहीं है। हम आपको अभी दो मिनट में दोनों Éric Trapper का वीडियो और फॉरेन सेक्रेटरी ऑफ इंडिया जयशंकर जी का वीडियो दिखाने वाले है। वापस याद दिलाने के लिए जब संस्थापित स्मृति कमजोर हो जाती है। दो दिन बाद 10 अप्रैल, 2015 को माननीय प्रधानमंत्री आकर घोषणा कर देते हैं कि HAL बाहर, एक व्यक्ति जो उस डेलिगेशन में है, उनकी संस्थाएं अंदर। ना रक्षा मंत्री को मालूम, ना विदेश सचिव को मालूम, ना उच्च पदाधिकारी CEO, दसॉल्ट को मालूम और कानून के अनुसार जितनी भी प्रक्रियाएं करनी हैं, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी, डिफेंस प्रोक्योरमेंट की मैनुअल, पुराना टेंडर जो चल रहा है, कैंसिल जो करना है, निरस्त करना है, ये कुछ नहीं हुआ है, 10 तारीख को जब घोषणा हो जाती है। ये सब बहुत बाद में होता है और अंतिम हस्ताक्षर 2016 में होता है। तो पूरे सिक्वेंस को उल्टा किया जाता है और आप जानते हैं कि देश का उच्च पदाधिकारी, माननीय प्रधानमंत्री जब कोई ऐसी घोषणा करता है तो, उसके बाद जो कुछ भी होता है, वो सिर्फ एक औपचारिक पूर्ति करने की सुपरफिशियल प्रक्रिया होती है, उसके कोई मायने नहीं होते हैं।

आज तक हमें उसका उत्तर नहीं मिला कि कौन से पागलपन के कारण, चिराग से ढूंढकर, दसॉल्ट जैसी विश्व सुप्रसिद्ध कंपनी ने चुनाव किया एक ऐसी संस्था, कंपनी का, जो बैंकरप्सी की कगार पर खड़ी थी। ये सार्वजनिक रुप से सब जानते हैं, उस तारीख को और उनको कोई नहीं मिला।

दो और मुद्दे संक्षेप में बताना चाहूंगा। पूर्व राष्ट्रपति ओलांद जी ने ये पुष्टि की है कि ऑफसैट के विषय में पूरी तरह से निर्णय भारत में हुआ, भारत सरकार के साथ हुआ है, दसॉल्ट ने वो किया, जो उसको कहा गया। मैं दोहरा रहा हूं कि आज तक 48 घंटे में इस वक्तव्य का कोई भी सही खंडन नहीं आया है। जो आज के वहाँ के विदेश मंत्री हैं, Lemoyne, उन्होंने एक प्रकार से पुष्टि की है, ये बात मैं अंग्रेजी में बोलना भूल गया था, उन्होंने ये कहा है कि राष्ट्रपति ओलांद के वक्तव्य से बिना मतलब भारत और फ्रांस के रिश्तों में दुष्प्रभाव हो सकता है। यानि उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के वक्तव्य के तथ्यों को बिल्कुल नहीं नकारा है, ये नहीं कहा कि वो गलत कह रहे हैं। बल्कि एक प्रकार से कांग्रेस के स्टेंड का पुष्टिकरण किया है, बल्कि ये बात कहने से शायद रिश्तें खराब हो जाएं। क्या बात कहने से, कि हमने तो वो किया, जो भारत सरकार ने हमें बोला।

तीसरा मुद्दा, जब हम डैस्पिरेशन, एक मायूसी, निराशा की बात करते हैं, तो उसकी हद पार करने के बीजेपी से आपको दिन-प्रतिदिन नए उदाहरण मिलते हैं। ये आज चरम सीमा पर पहुंच गए हैं, हर उत्तर से और दलदल में फंसने की प्रक्रिया में बीजेपी फंस गई है। हर उत्तर और मजाकिया होता है, हर उत्तर और कुतर्क होता है, लेकिन आपके प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते।

आपको कहा गया है कि जैसे भारत और भारत के विपक्ष के अध्यक्ष राहुल गाँधी जी एक कॉन्सपिरेसी में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद जी के साथ हैं। इससे ज्यादा मजाकिया बात क्या हो सकती है? जाते आप हैं, करारनामा आप करते हैं, घोषणा आप करते हैं, 2015 में सबकुछ आप करते हैं, नीति का उल्लंघन आप करते हैं, रुल्स, प्रोसीजर का उल्लंघन आप करते हैं और collusion में तब के राष्र्रपति से हम हैं। ये किस प्रकार का कुतर्क है, मुझे अभी तक समझ नहीं आया है। बीजेपी के बहुत प्रमुख और दिग्गज मंत्री जो अपने आपको इतना शीर्षस्थ समझते हैं, वो बताएं कि ये भारत की समझ को और भारतीय लोगों की समझ को अपमानित करने की प्रक्रिया है या इसमें कोई तथ्य हो सकते हैं?

हमें बताया जाता है कि हम अपना संतुलन खो बैठे हैं, हम तैयार हैं सब गाली-गलौच सुनने के लिए, लेकिन जो प्रश्न हम पूछ रहे हैं, उसका तो आप जवाब दीजिए। क्यों दसॉल्ट ने ये चयन किया, क्यों हर प्रोसीजर को नजर-अंदाज किया, कैसे हो सकता है उन 15 दिनों में कि आपके विदेश सचिव नहीं जानते, रक्षा मंत्री नहीं जानते और दसॉल्ट का सीईओ नहीं जानता और अचानक ये फ्रांस में दो दिन में कैसे हो गया?

जैसा कि मेरे सहयोगी ने पहले भी ट्वीट किया है, ये राजनीति के सस्तीकरण की प्रक्रिया, जो बीजेपी अपनाती है, उसमें उसको कोई भय नहीं है कि भारत की विदेश नीति किस प्रकार से कमजोर पड़ गई है। अपने आपको बचाने की प्रक्रिया में वो तैयार हैं, किसी भी देश और उस देश की नीति में गाली-गलौच करना, उसको मानहानि पहुंचाना और सब लोगों को बहकाना और बहलाना। आप जानते हैं कि फ्रांस अधिकतर हमारे साथ बहुत मजबूत मित्र की तरह खड़ा रहा है। NSG के विषय में उसने हमारा समर्थन किया, कागरिल के विषय में, संकट के समय हमारे साथ खड़ा रहा और आज हमें ये बताया जा रहा है कि उसके पूर्व अध्यक्ष, पूर्व राष्र् पति के साथ यहाँ पर एक कॉन्सपिरेसी हुई है। अपनी राजनीतिक रोटियाँ पकाने के लिए आप कितनी सीमा पर जा सकते हैं और इससे आप अपनी मायूसी और निराशा को दर्शाते हैं।

अंतिम बिंदु, CAG, जैसा कि आप जानते हैं कि हम कुछ दिन पहले कैग के पास गए थे। आज हमारा डेलिगेशन, मैं भी गया था, CVC के पास गए। हमनें हस्ताक्षरों और दस्तावेजों के साथ बहुत व्यापक और ठोस पुलिंदा दिया है। मैं समझता हूं कि कोई व्यक्ति अगर तारीखें देखें और दस्तावेज देखे तो एक बहुत गंभीर मुद्दा खड़ा है, ये बहुत बड़ा घोटाला है, शायद सबसे बड़ा घोटाला है और इसमें तुरंत एक निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है। लेकिन जब हमने इसी प्रकार की दलील कैग के साथ की, तो बहुत विचित्र उत्तर आया और वो उत्तर एक और पैमाने से ये दर्शाता है कि ये सरकार कितनी घबराई हुई और बौखलाई हुई है। वो उत्तर माननीय वित्त मंत्री द्वारा ये दर्शाता है, जैसे बीजेपी सरकार, वित्त मंत्री और उनका मंत्रालय कैग को अपना एक विभाग समझता है। आप जानते हैं कैग एक निष्पक्ष संवैधानिक संस्था है, हमें कल वित्त मंत्री वाले वक्तव्य से एक सीख पढाई गई है, कि हाँ, कैग निष्पक्ष रुप से कीमत का मुद्दा देखेगा और ये निर्णय करेगा कि क्या कीमत में, ये दोहराया गया है, वित्त मंत्री के लिखित स्टेटमेंट में, ब्लॉग में कि क्या कीमत ज्यादा थी या कम थी, तुलनात्मक रुप से एनडीए के साथ। उसके बावजूद हम कुछ बदलेंगे नहीं और हमें बदलना आवश्यक नहीं है। ये कितना अजीबो-गरीब वक्तव्य है। क्या ये नहीं दर्शाता कि सीधा संदेश भेजा जा रहा है एक संवैधानिक संस्था को कि वो क्या करे, क्या ना करे, क्या कर सकती है, क्या उसका अधिकार क्षेत्र है, क्या नहीं है और अगर वो, वो करेगी जो पंसद नहीं होगा सरकार को, तो सरकार का क्या रुख होगा, ये भी इस संदेश में निहित है। क्या ये पूर्व निर्णय नहीं है, एक संवैधानिक संस्था के द्वारा, दूसरी संवैधानिक संस्था के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं है? क्या एक प्रकार से, जिसको अंग्रेजी में Fraudulence कहते हैं, वो नहीं की वित्त मंत्री ने?

Has he not let the cat out of the bag by this statement which pre judges and pre decide,  आज ये अति आवश्यक है कि निष्पक्ष जांच हो, किसी रुप से सरकार से प्रभावित या दुष् ना हो। ये न्यूनतम बात है, हम ये भी कह दें आपको कि हमने आज CVC मीटिंग में कहा है कि कम से कम शुरुआत हो कि सभी दस्तावेज जब्त हों। दूसरा, इस पूरे ट्रांजेक्शन में एक रुकावट आए और उसके बाद एक व्यापक, गंभीर तहकीकात हो।

अपने आप निर्णय कर लीजिए, इससे ज्यादा क्या किसी को भी तथ्य या तत्व चाहिएं।

एक प्रश्न पर कि सरकार ने कांग्रेस की जेपीसी की मांग को ठुकरा दिया है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि आप समझते हैं कि हमें इस पर संदेह है कि जेपीसी बैठाने को कभी ये तैयार हो सकते हैं। चोर की दाढ़ी में तिनका, दाढ़ी ही अगर तिनके की हो। तो हमें इस पर कोई आश्चर्य तब होना चाहिए, अगर ये हमारी मांग मान लेते। मैं ये मानता हूं 30 सैंकिड के लिए कि जेपीसी नहीं चाहिए, हिम्मत है तो आप बोल दीजिए कि एक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जो इंडिपेंडेडली नोमिनेट हो, मैं कह नहीं रहा हूं, मैं उदाहरण दे रहा हूं। तो जिन चीजों की, कभी हमारे दिमाग में आशंका ही नही किसी बारे में तो इसमें आश्यर्च होने की क्या बात है।

एक अन्य प्रश्न पर कि जो भी अभी हाल में हुआ है क्या कांग्रेस ये कहना चाहती है कि राफेल डील को रद्द किया जाए, डॉ. सिंघवी ने कहा कि, हमें कभी भी राफेल विमान से कोई आपत्ति नहीं थी, as a विमान, लेकिन अगर बाद में दो हफ्ते बाद, दो महीने बाद, एक वर्ष बाद ये दलील होने वाली है कि अब हमें ये मालूम पड़ा है कि ये सब गलत है, भ्रष्ट है, इत्यादी, लेकिन अब हम इसे रिवर्स नहीं कर सकते, क्योंकि ये आगे चल पड़ी है। हमने उस हिसाब से कहा है कि वो चीज कुछ नहीं होगी, या तो हमें विश्वास दीजिए, कि हमारी जांच चल रही है, अगर ऐसा हुआ बाद में तो हम इसको रिवर्स कर सकते हैं। In any case आपका उत्तर क्या हो सकता है, जो दस्तावेज हैं, उनको तो फ्रीज करना आवश्यक है। हम जानते हैं दस्तावेजों का क्या होता है, सरकारी फाईलें किस प्रकार से मूव करती हैं, सब जानते हैं। इसलिए हमने कहा कि कल आप ये नहीं बहस करें कि जो गाड़ी आगे निकल गई है, उसको आप पीछे नहीं ले सकते। दो अलग-अलग चीजें हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरी है। आज अगर आपको इसमें भ्रष्टाचार का पूरा सबूत मिलता है, औपचारिक और सरकारी रुप से, तो इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि इस डील को या तो रद्द करना पड़ेगा या इसको एक अलग कीमत में लेना पड़ेगा। ये कैसे हो सकता है कि आप भ्रष्टाचार भी होने दें, कीमत भी वही रहने दें, गलतियाँ भी पाएं, फिर आप पूरी जांच क्यों करेंगे? पहले इसमें कम से कम सूचना दें, वार्निंग दें और कागजात जब्त करें, कम से कम शुरुआत तो करें।

रक्षा मंत्री के दिए बयान पर पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि किसी एक बरगलाने, बहकाने वाले वक्तव्य को 10 बार दोहराने से वह कोई सच नहीं हो जाता। सिर्फ जो उस वक्तव्य को जो बोल रहे हैं, वो अपना मजाक उडाते हैं। जो अभी आपने बोला, वो और कुछ नहीं है, सिवाए वित्त मंत्री के शब्दों को दोहराना, एक कठपुतली की तरह उसी तरह शब्दों को वापस दोहराना और वित्त मंत्री के शब्दों का क्या अभिप्राय है, वो मैंने व्यापक रुप से मैंने बता दिया। मैं समझता हूं दिन-प्रतिदिन इस प्रकार के वक्तव्यों का आना, हमारे प्रश्नों का कोई ठोस उत्तर नहीं आना, ये अपने आपमें गिल्ट को स्थापित करता है।

कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी की एसपीजी को लेकर होम मिनिस्ट्री ने एक प्रेस रिलीज जारी की है, क्या कहेंगे, इसके उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि इस सरकार की जो हर दिन घबराहट है, क्योंकि दिन-प्रतिदिन राहुल गाँधी जी के वक्तव्य सीधे तीर की तरह निशाने पर लगते हैं। अब पिछले हफ्ते में 3-4 तीर तो लग गए हैं, घायल तो हो ही गए हैं। अब इस घायल अवस्था में आप इस प्रकार की बहकाने वाली चीजें देख रहे हैं। जिसका उत्तर आपने खुद दिया कि उस वक्तव्य में किसी का नाम नहीं है। वो फिर भी तैयार हैं कि किसी अफसर से पूछ कर, राहुल गाँधी जी का वक्तव्य सिर्फ झुठलाना है। अगर विदेश के किसी पंछी से भी पूछ कर भी झुठला पाएं, तो उनका सिर्फ उद्देश्य है कि राहुल गाँधी जी के वक्तव्य को झुठलाना है। तो ये किसकी घबराहट दर्शाता है। मैं नहीं समझता कि इस प्रकार की बचकाना चीजों से आप देश चला सकते हैं या देश के जो प्रश्न हैं, जवाबदेही के, उनको संतुष्ट कर सकते हैं।

 

Sd/-

(Vineet Punia)

Secretary

Communication Deptt.

AICC

Related Posts

Leave a reply