My AICC Press Brief dated 22.05.2017 in Hindi

डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं इस दयनीय स्थिति को वापस विस्तार से दोहराना नहीं चाहता। लेकिन जिसको भी भारत की अस्मिता, लोकतंत्र और गणंतत्र की थोड़ी सी भी चाह है, वो इस प्रकार के चीज से अपना माथा शर्म से हमेशा के लिए झुका कर रखेगा।

इस देश में सरेआम, खुल्लमखुल्ला फांसी लगाने का अभियान चल पड़ा है। सबसे बड़ा गणतंत्र विश्व का और कानून व्यवस्था के नाम पर ना कोई भय है और ना ही अनुशासन। क्या ये भारत की अस्मिता और आत्मा है और क्या ये भारत का नया नोर्मल है? मोदी जी का नया नोर्मल, बीजेपी और एनडीए का नया नोर्मल। क्या ये वो नोर्मल है जिसमें दोषरहित व्यक्तियों को किसी भी संदेह, उंगली उठाकर या किसी भी आरोप के आधार पर बिना न्याय मिले, क्षणिक न्याय मिल जाता है और तुरंत न्याय मिल जाता है और ये न्याय पेड़ वाला न्याय होता है।

आज इस सरकार का विजिटिंग कार्ड, अस्तित्व और व्यक्तित्व और इस सरकार की आईडिंटिडी जो हो गई है वो है असहिष्णुता। दुखद प्रसंग ये है कि इसमें प्रादेशिक और केन्द्र स्तर पर समर्थन प्रकट किया जाता है, सभी सरकारी व्यक्तियों के द्वारा।अभी हाल में जो हमने देखा 7 व्यक्तियों की मृत्यु हुई है, पुलिस वाले खड़े हुए हैं। 80 साल की बुजुर्ग महिला के साथ भी मारपीट की गई है। दलित हो, अल्पसंख्यक हो, मानवता का कोई भी द्योतक हो, उनको कोई मतलब नहीं। इसमें एक गहरी बात छुपी हुई है जिसको छुपाने के लिए ये सभी ढोंग किए जाते हैं, कभी गाय के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर वो हैं तीन चीजें- मानव अधिकार से असहिष्णुता, मानव अधिकार के विरुद्ध एक भावना, दलित और पिछड़ी जातियों के विरुद्ध एक भावना और हर चीज को साम्प्रदायिक बनाने की भावना। इन तीन चीजों पर सीधे और परोक्ष रुप से कई यंत्र-तंत्र बनाए गए हैं जिससे इनको आगे बढ़ाया जाए, प्रवोक किया जाए, समर्थन किया जाए। आपको अच्छे ये याद है कि दलित व्यक्तियों के कपड़े उतार कर कैमरे के समक्ष पीटा गया। किस प्रकार से अखलाक और दादरी हुआ सिर्फ संदेह के आधार पर। 23 वरिष्ठ सरकारी अफसरों, सेवानिवृत और जिनका कोई सरोकार नहीं राजनीति से, बार-बार राजस्थान के मुख्यमंत्री के अनुरोध किया कि पहलू खान के विषय में कि आप तुरंत गिरफ्तार करें। महीनें, हफ्ते निकल जाते हैं लेकिन कोई जवाब तक नहीं आता।

जम्मू से लेकर हरियाणा तक, चाहे गैंगरेप हो, महिला का चेहरा पत्थर से कुचल दिया जाता है या जम्मू में nomadic परिवार था, उसकी बात हो। आपके कैमरे के सामने था, वो अपने जीवन की भीख मांग रहे थे और ये 2017 वाले भारत में हो रहा है, क्या ये नया भारत है, क्या ये नया नोर्मल है?

मोदी जी ने सदैव पिछले 3 वर्षों में या तो जुमले सुनाए हैं या महान व्यापक वक्तव्य दिए हैं या फिर बड़ी विशेष चुप्पी बड़े crucial और संवेदनशील मुद्दों पर। एक तरफ मोदी जी ये कहते हैं और दूसरी तरफ उनकी पार्टी के लोग, उनके समर्थक ऐसे लाईसेंस टू किल को कार्यांवित करते हैं जिससे जेम्स बांड को भी शर्म आ जाए। ये बहुमत की एक विचित्र परिभाषा है जो गणतंत्र और लोकतंत्र के विरोधी हैं। ये जो नई परिभाषा है, बहुमत की, ये असहिष्णुता को छुपाने के लिए है। इन सबको छुपाने के लिए कई सांसद, मंत्री महोदय, वरिष्ठ अधिकारी बीजेपी और योगी जी के अलग-अलग स्तर के लोगों की सभी टिप्पणीयों की एक सूची, हमारे पास है जो आपके समक्ष रखी है। ये क्रूर, साम्प्रदायिक हैं और सरकार ने उनके विरुद्ध कभी कुछ नहीं किया, सिवाए सर्मन देने के।

हम बात करते हैं ठोस तथ्यों की। 2013 से 2015 में लगभग 38 प्रतिशत वृद्धि हुई है दलितों के विरुद्ध क्रिमिनल एट्रोसिटी के विषय में। 39 हजार से 54 हजार है ये आंकडा। आज दिन प्रतिदिन हम देख रहे हैं वो बहुत ही विकृत परिभाषा इस देश की है।

परेश रावल के अंरुधति राय पर ट्वीट पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा कि आपका प्रश्न महत्वपूर्ण है और एक प्रकार से जो मैंने कहा है उसको प्रमाणित किया है। मेरी जो दुर्भाग्यपूर्ण, लंबी और दुखद सूची है आपने उसमें एक और उदाहरण जोड़ा है। ये मामला इस बात का नहीं है कि किसी ने क्या कहा किसी के बारे में। इस कमरे में कई ऐसे लोग हैं जिनमें मैं भी शामिल हूं जो अंरुघति राय की कई चीजों से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं। लेकिन जो Voltaire की कहावत है कि गणतंत्र और लोकतंत्र की परिभाषा, कसौटी पर कि जब आपसे चाहे मैं बहुत बुरी तरह से भी असमहत हूं, तब भी आप खड़े होकर मेरी असहमती जाहिर करने के मानवाधिकार हक का समर्थन करें। ये चीज आज भारत से हटाई जा रही है, परोक्ष रुप से कम सीधे रुप से ज्यादा। इसके बहुत से उदाहरण हमने दिए एक आपने दिया। जब तक इस बात को समझा नहीं जाएगा वर्ष प्रतिवर्ष परिभाषा परिवर्तित होगी और भारत को अपना सर शर्म से झुकाना पड़ेगा।

एक अन्य प्रश्न पर कि पुलवामा में आज पाकिस्तान का राष्ट्रगान गाया गया है, क्या कहेंगे, श्री सिंघवी ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने हमेशा भर्त्सना की है इस प्रकार की राष्ट्र विरोधी चीजों की। जो पहले हुआ है उसकी भी हमने भर्त्सना की है, लेकिन ये मुद्दा वो नहीं है। जो मूल मुद्दा है मीडिया उसको कई कारणों से भूल जाते हैं। पिछले 3 वर्षों से क्या ऐसी वारदातों में वृद्धि दोगुना-चौगुना नहीं हुई है? आप आंकड़े देख लीजिए। सबसे ज्यादा राष्ट्रवाद के सबक मैं सिखाता हूं और मेरी ही सरकार में ये होता है, ये विडंबना नहीं है क्या, केन्द्र में भी मेरी सरकार और राज्यों में भी मेरी सरकार, दिन प्रतिदिन, हर क्षण यही सिखाया जाता है कि राष्ट्रवाद क्या होता है, राष्ट्रवाद की परिभाषा सिखाई जाती है। ताने कसे जाते हैं, अपमान किए जाते हैं और आपकी नाक के नीचे ऐसा हो रहा है। आप असमर्थ क्यों हैं? आप जुमले देने में समर्थ हैं, उपदेश देने में समर्थ हैं, सिर्फ वाक्यों को बदलने में समर्थ है या फिर जमीनी स्तर पर भी कुछ करने में भी समर्थ हैं?

हुर्रियत पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा कि हुर्रियत के साथ बातचीत होनी चाहिए, नहीं होनी चाहिए उनको कब हाउस अरेस्ट पर रखना चाहिए, कब डिटेंशन में, कब उनके कारण पाकिस्तान से बातचीत तोड़नी चाहिए और कब नहीं। इन सबको एक नीति में पिरोना आवश्यक है। हमारा ये मानना है कि इनमें से कोई भी नीति सही हो सकती है। लेकिन इस सरकार का दुर्भाग्य ये है कि पिछले 3 वर्षों में अगर सोमवार है तो नीति उत्तर की है, मंगलवार है तो नीति दक्षिण की है। हफ्ते में 8 बार नीति बदलती है। ये सबसे दुर्भाग्य की बात है। कोई भी एक नीति बनाकर उस पर रहना, आपने देखा कि कैसे हुर्रियत के कारण कैंसिल हुई, अलाउ हुई, फिर हुर्रियत से ही जाकर मिलेंगे भारत से बाहर। फिर लंच हुआ पाकिस्तान के साथ। तो ये सब जो ज़िग-ज़ैग है, यू-टर्न है इससे गलत संदेश जाता है।

कश्मीर में सभी लोग केवल सरकार व सत्तारुढ़ दलों को छोड़कर चिंतित हैं। बहुत ज्यादा चिंतित है, विपक्ष के सभी हिस्से और वो हिस्से विपक्ष के जो आपस में सहमत नहीं हैं कई मुद्दों पर। ये राष्ट्र के लिए बहुत बड़ा महत्वपूर्ण बिंदु है पिछले 3 वर्षों में। कई स्तरों पर बात हुई है, आप विपक्ष की बात क्यों कर रहे हैं, खुद बीजेपी के कई सेक्शन, बीजेपी के पूर्व वित्त मंत्री इसमें हैं विपक्ष के साथ। ये सकारात्मक चीज है। इसमें राजनीतिक द्वेश की भावना से कुछ नहीं हो रहा है। लेकिन इसका क्या स्वरुप है, किस प्रकार से होगा उस पर नहीं जा सकते। निश्चित रुप से ये बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और सरकार पिछले 3 वर्ष से इस पर अवहेलना कर रही है।

एक अन्य प्रश्न पर मणिपुर के मुख्यमंत्री के बेटे के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है उस पर क्या कहेंगे, श्री सिंघवी ने कहा कि ये चौंकाने वाली बात नहीं, बहुत ही दर्दनाक बात है, अगर आप उस परिवार की तरफ से देखें जिसके विषय में ये हुआ है। आप मणिपुर की सड़क पर दिन दहाड़े छोटे से झगड़े पर गन निकाल कर शूट कर देते हैं। मर्डर का चार्ज नहीं लगाया जाता है, डायल्यूट किया जाता है, Man slaughter – culpable homicide not amounting to murder का चार्ज लगाते हैं और जनवरी 2017 में साढ़े 4 साल के ट्रायल के बाद सजा मिलती है। 2017 के बाद आज मई साढ़े 4 महीनों में आपको बेल मिल जाती है और उसका विरोध भी नहीं किया जाता। सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात इसमें प्रोसिक्यूशन ऐजेंसी कौन है, सीबीआई। केन्द्र भी आपका, प्रदेश भी आपका, तो ये प्रश्न उठता है कि क्या माननीय मुख्यमंत्री जी ने इसलिए पद संभाला था, इसलिए दल-बदल किया था, इसलिए अस्थिरता पैदा की थी। अस्थिरता द्वारा आपने सरकार बनाई थी, इसलिए की थी ताकि अपने लड़के को रिहा करा सकें? जितने भी आपको मोदी जी के उपदेश मिलते हैं, फरमान और जुमले मिलते हैं वो स्वच्छ और सुशासन के शब्द हैं या ये नई स्वच्छ और सुशासन की परिभाषा है जहाँ पर जोड़-तोड़ करके ये सरकार बनाई है और शायद इस सरकार के बनाने का एक उद्देश्य आपके सामने परिभाषित हो रहा है।

3 तलाक पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में श्री सिंघवी ने कहा कि इसमें दो पहलू हैं। एक तरफ तो अटार्नी जनरल ने कहा है कि अगर स्ट्राईक डाउन करते हैं तो हम नया कानून लाएंगे। ये प्रश्न उत्तर उस सुनवाई के दौरान भी हुआ था कि अगर आपने तलाक की पूरी प्रक्रिया को ही हटा दिया, असंवैधानिक करार दिया तो जहाँ पर नोर्मल तलाक है A और B के बीच में तो वो तलाक कैसे होगा, तो उसके उत्तर में कहा था कि हम कानून लाएंगे। लेकिन एक और प्रश्न है जो आप भूल गए- वैंकेया नायडू जी ने कहा कि अगर नहीं किया तो हम कर देंगे स्ट्राईक डाउन एक कानून लाकर। तो प्रश्न ये हुआ कि पिछले 36 महीनों से क्या कर रहे थे आप? उसी से हमारा प्रश्न उठता है कि आपने इतना मूल्यवान समय सुप्रीम कोर्ट का नष्ट क्यों किया? कानून ही ले आते, पूरी सुनवाई क्यों की? आपके अटार्नी जनरल एक आवाज में बोल रहे हैं, केन्द्रीय मंत्री, वरिष्ठ मंत्री दूसरी आवाज में बोल रहे हैं। लेकिन हम समझते हैं कि सभी आवाजें एक चीज के लिए हैं, इसे साम्प्रदायिक की भावना भड़काने के लिए कह लीजिए या विभाजन के लिए कह लीजिए, उसको प्रेरित करने के लिए है, वोट की राजनीति के लिए है।

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