26-August-2018 कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन संबोधित करते हुए |

ALL INDIA CONGRESS COMMITTEE

24, AKBAR ROAD, NEW DELHI

COMMUNICATION DEPARTMENT

डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सभी को रक्षाबंधन के पर्व पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

 

आज मैं एक डीएनए बिल के बारे में बात करना चाहता हूं। सरकार जो प्रयत्न कर रही है, डीएनए बिल लाने के लिए, जिसमें आपका, मेरा, सबका डीएनए, सबका डेटा बैंक बनेगा। और मैं इसलिए बात कर रहा हूं क्योंकि हमने कई बार पहले बातचीत की है कि ‘निजता औऱ गोपनीयता की सुरक्षा पर प्रहार, भाजपा राज में एकमात्र हथियार। जनता की जासूसी, मोदी सरकार की निंदनीय प्रवृत्ति। आम लोगों के निजी जीवन में ताकझाँक करना, जासूसी करना व उस पर नियंत्रण रखना भाजपा का इकलौता उद्देश्य बन गया है ! निजता और गोपनीयता की सुरक्षा पर बार-बार प्रहार किया गया है। जनता के प्रति जासूसी की जो प्रवृत्ति रही है वो, मोदी सरकार की अत्यंत निंदनीय प्रृवत्ति रही है, शुरुआत से और हम मानते हैं कि आप लोगों को निजी जीवन में तांक-झांक करना, जासूसी करना, उसको नियंत्रित करना और नियंत्रण में रखना ये इस सरकार का एक इकलौता उद्देश्य सदैव रहा है और इसकी भर्त्सना हम कई बार कर चुके हैं।

मैं डीएनए बिल पर आने से पहले दो सेंकड में आपको याद दिला दूं, इसकी पहली प्रवृत्ति, पहला उदाहरण आपने देखा जब आधार के विषय में, लीकेज के इतने आरोप हुए थे। पूरे देश में इसके विरुद्ध एक क्रांति हुई थी। एक अच्छा- खासा आधार जो हम लाए थे, जिसके साथ हम खड़े हैं, उसका विकृत रुप किस प्रकार से पेश हुआ और उसका बैकलैश हुआ और अब उच्चतम न्यायालय, हम आशा और विश्वास करते हैं कि कई उसमें सुरक्षा चक्र लगाएँगे, सेफ गार्ड्स लगाएँगे। दूसरा उदाहरण आपने देखा कि उच्चतम न्यायाचल में निजता का मुद्दा आया, जो अब मुत्तुस्वामी निर्णय से जाना माना है। उस निजता को एक मानवाधिकार बाट-3 संविधान के अंतर्गत मानवाधिकार मानने से स्पष्ट तबके एटार्नी जनरल ने मना कर दिया। कहा ऐसा कोई मानवाधिकार होता ही नहीं, ये सरकार का स्टेंड था। ये अलग बात है कि उच्चतम न्यायालय ने इस दलील का व्यापक रुप से उसको निरस्त किया।

तीसरा उदाहरण था, जब कई विश्व में ऐसी संस्थाएँ, जिनके ऊपर एक प्रश्नचिन्ह था, कैंब्रिज ऐनालिटिका एक उदाहरण है। वहाँ से डेटा को जमा करने, संग्रह करने के विषय में आरोप लगे, बहुत सारे। जिनका हमको कोई समझदार उत्तर नहीं मिला है या ऐसा उत्तर नहीं मिला जिससे कि हम मान लें कि सरकार सही है और अंतिम था, जिसमें मैं वकील के तौर पर पेश हुआ था, दो मामलों में कि ये सोशल मीडिया कम्यूनिकेशन हब के नाम से जो टेंडर निकाले, जिसको हमारी याचिका के बाद में और जब याचिका में उच्चतम न्यायालय ने कई प्रश्न उठाए और कारण बताओ नोटिस किया तो उसके बाद जाकर बहुत बड़ी मुश्किल से सरकार ने उसको विद्ड्रो किया। हमारी एक और याचिका एक वैसे ही टेंडर के विषय में अभी लंबित है, जो आधार में लिया जाए। ये चार हमने आपको उदाहरण दिए हैं।

अब डीएनए बिल की बात है, इन उदाहरणों से बिना सबक सीखे ये सरकार बार-बार गुप्तचर का, जासूसी काम करने में तत्पर रहती है और कभी भी इतिहास से सबक नहीं सीखती है। डीएनए बिल इसका एक औऱ लुका-छुपा उदाहरण है। मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि इसको इंट्रोड्यूस किया गया राज्यसभा में और जैसे ही देखा कि आम तौर से सभी पक्षों का इस पर संदिग्ध, एक संदेह था, एक प्रश्नचिन्ह था तो इसको हटाकर करीब-करीब आखिरी हफ्ते में लोकसभा में इंट्रोड्यूस कर दिया गया । 8 अगस्त के लेट शाम को इसको नोटिफाई किया लोकसभा के लिए और 9 अगस्त को इंट्रोड्यूस किया,जबकि शुरुआत हुई थी इसकी राज्यसभा में,जहाँ की सामूहिक रुप से विपक्ष ने अपने मत रखने का प्रय़त्न किया था और उससे डर कर, भय से विदड्रो कर के एक प्रकार से बैकडोर से दूसरे तरीके से वही चीज करने का प्रय़त्न किया गया था।

दूसरा कि जब आपकी श्री कृष्णा रिपोर्ट आ गई है, इतने समय के बाद, डेटा प्रोटेक्शन बिल निश्चित रुप से बनाना अनिवार्य है, उस रिपोर्ट के अंतर्गत, बनने वाला भी है, कुछ समय लगेगा बनने में, तो डेटा प्रोटेक्शन बिल बनने से पहले ही क्या जल्दी है डीएनए बिल लाने की? डीएनए बिल में आपकी शक्ल के बारे में, आपकी आँखों के बारे में, आपके बाल के बारे में, मेरे चेहरे के बारे में संग्रह करुंगा तथ्यों का। लेकिन उन तथ्यों की सुरक्षा कैसे होगी, वो उस डीएनए में कुछ नहीं है, संग्रह की बात है। डेटा कलेक्शन और डीएनए फुली, लेकिन उसमें सुरक्षा चक्र का कोई जिक्र नहीं है। तो सुरक्षा चक्र ये मान लिया जाए कि डेटा प्रोटेक्शन बिल में आने वाला है, उसमें भी त्रुटियां हैं, वो एक अलग कहानी है, तो उसके लिए इंतजार क्यों नहीं किया गया? इसका कारण बड़ा सरल है, इस सरकार का पुराना इतिहास, इस सरकार का एक मत कि निगरानी के जरिए अनुपालन किया जाए। सर्विलेंस के जरिए कनफर्मिटी की जाए, निगरानी के द्वारा अनुपालन, पूरे देश का अनुपालन किया जाए। ये अनुपालन वाली सरकार है और वो चाहती है साम-दाम-दंड-भेद द्वारा, कभी आधार के द्वारा, कभी कम्यूनिकेशन हब टेंडर द्वारा, कभी प्राइवेसी जजमेंट के द्वारा कि ये कनफर्म सरकार रहे। चार या पांच बिंदु डीएनए बिल के बता दूं आपको।

बिंदु नम्बर एक मैं डिटेल में नहीं जाउंगा, उसके क्लोजिज हैं। उदाहरण के तौर पर क्लॉज 4 बी है। जो एनिमेंट पर्सन सुप्रसिद्ध व्यक्तित्व जो वहाँ नियुक्त होगा, वो पूरा सरकार पर छोड़ दिया है। तो आप अपने ही जैसे अटार्नी जनरल को उसी जरिए अपोइन्ट कर दिया, दूसरे लोकपाल में, उस तरह से आप अपने ही लोगों को अपोइन्ट करेंगे, तो वो निष्पक्षता, वो संतुलन कहाँ से आएगा?

दूसरा, डेटा प्रोसेसर और डेटा कलेक्शन संग्रह वाले कई यंत्र-तंत्र हैं इसमें, लेकिन जैसा मैंने कहा कि डीएनए लेब्रोरेट्री से जो डेटा आएगा, उसकी सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं है, कम से कम कोई मिनिंगफुल प्रावधान नहीं है।

तीसरा, यद्पि इनसे बाध्य नहीं होती है न्यायपालिका, लेकिन उद्देश्य मालूम पड़ता है, क्लोज-57 में जो उद्देश्य है कि कोई भी न्यायपालिका बाहरी निरीक्षण-परीक्षण इस बिल का ना करे, ये प्रावधान एक है। ये उद्देश्य है,कि निगरानी न्यायपालिका की हटाई जाए। ये अलग बात है कि कानून हमारा स्थापित है कि ऐसे क्लोजिज से हम न्यायपालिका की निरीक्षण-परीक्षण का क्षेत्र है, उसको बाहर नहीं रख सकते।

चौथा, कोई प्रावधान नहीं है कि जो डेटा आपने कलेक्ट किया, आपके बदन के बारे में, मेरे माथे के बारे में, आपके बाल के बारे में और आप जानते हैं कि उससे आपकी एक बहुत व्यापक प्रोफाईलिंग हो सकती है, उसको थर्ड पार्टी से कितना शेयर कर सकते हैं, नहीं कर सकते, कब कर सकते हैं और क्यों कर सकते हैं, कितना कर सकते हैं, कोई प्रावधान नहीं है।

पाँचवा, कितने समय तक आप किसी का डीएनए डेटा रखेंगे, 5,000 वर्ष, 100 वर्ष, 10 वर्ष और फिर वही बात जितना भी रखेंगे आप, इसकी कोई परिधि नहीं है और उसका दूसरा प्रश्न मैंने बता दिया कि सुरक्षाचक्र।

और अगर आप इन सबको जोड़ दें, आधार में प्रयत्न, निजता के बारे में, सोशल प्रोफाईलिंग बिल और अब ये डीएनए, तो इससे व्यापक 360 डिग्रीज की निगरानी की जो प्रवृति है, वो सामने आती है। ये हमने पहले कभी देश में देखा नहीं, सरकारें 70 साल से चल रही है, नॉन कांग्रेसी सरकारें भी आई, बीजेपी की भी सरकारें आई, ये प्रवृति कहाँ से आई, ये नियंत्रण की सनक वाली प्रवृति है। हर चीज को माईक्रो मैनेज करके नियंत्रित करके रखना, काबू में रखना, ये दर्शाती है डिक्टेटरशिप वाली प्रवृति। एपी शाह समिति जो थी, निजता पर, उसने कहा कि डीएनए प्रोफाईलिंग ऐसी होनी ही नहीं चाहिए, अगर हो तो बहुत ही व्यापक, प्रमाणित मापदंड जब तक सुरक्षा वाले ना हों, तब तक नहीं होने चाहिए।

मैं मानता हूं कि आज के मुत्तुस्वामी निर्णय निजता वाले जजमेंट के विरुद्ध है, उसकी आत्मा के विरुद्ध है, अक्षरों के विरुद्ध है।

तो अंत में एक बात कहेंगे कि प्रश्न नंबर एक श्रीकृष्णा समिति के अंतर्गत आप जो एक्ट लाएंगे, उसके एक्ट को कार्यांवित होने से पहले इतनी जल्दबाजी में डीएनए प्रोफाईलिंग बिल क्यों लाएं, प्रश्न नंबर एक, आपके जरिए। नंबर दो, अगर आपने डीएनए बिल से पहले लोकसभा के जरिए पास करवाया और तब तक डेटा प्रोटेक्शन बिल एक विपरीत दिशा में आया, तो आप दोनों को हार्मोनाईज कैसे करेंगे, ताल-मेल कैसे बिठाएंगे, दोनों के बीच में? ये जल्दबाजी भी अपनी कहानी सुनाती है एक।

कांग्रेस पार्टी ये स्पष्ट करना चाहती है आपके जरिए कि हम इस प्रकार की निगरानी की प्रवृति, जासूसी की प्रवृति, गुप्तचर प्रयोगों की प्रवृति, संग्रह बिना सुरक्षा की प्रवृत्ति, इत्यादि का पूरी तरह से सम्पूर्ण विरोध करते हैं।

दूसरा कांग्रेस पार्टी आपके जरिए मांग करती है स्पष्ट रूप से कि कम से कम न्यूनतम डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के बाद ही इस बिल पर चर्चा होनी चाहिए, पारित होना तो दूर की बात है, चर्चा संसद में उसके बाद शुरु होनी चाहिए।

तीसरा, डेटा प्रोटेक्शन बिल जो आप ला रहे हैं, या तो उसमें सुरक्षा चक्र डालना चाहिए, इस विषय में। तो इसको संशोधित कीजिए आप। या डीएनए प्रोफाईलिंग बिल जो प्रस्तावित है लोकसभा में, उसमें सुरक्षा चक्र डालना चाहिए।

एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं समझता हूं कि अकाली दल और ऐसी पार्टियाँ राजनीतिक रोटियाँ पकाने के आरोप से ग्रस्त हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी जी के हर वक्तव्य को विकृत करने से सच्चाई नहीं छुप सकती और मैं आपको बड़ा स्पष्ट तीन-चार बिंदु में उसी बात को दोहरा देता हूं। कांग्रेस पार्टी, राहुल गाँधी और उससे पूर्व सोनिया गाँधी सभी ने बार-बार एक बार नहीं हजार बार आपके सामने ये कहा है अलग-अलग फोरम में कि ये सबसे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण एक घटना थी, भर्त्सना योग्य घटना थी, दुखद प्रसंग था। दूसरा, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने माफी मांगी है। नंबर तीन, कांग्रेस के कई नेता जो एक जमाने में दिग्गज थे, उनको राजनीतिक हानि पूर्ण रुप से हुई है। आप नाम जानते हैं, एक-दो-तीन नाम मैं दिल्ली के बता सकता हूं आपको, आप जानते हैं। नंबर चार, अनेक कांग्रेसियों ने प्रोसिक्यूशन फेस किया है, पूरा फौजदारी प्रोसिक्यूशन, कानून ने अपना रवैया लिया है। कहीं कनविक्शन हुआ है, कहीं एक्विटल हुआ है, कहीं कार्यवाही चल रही है। उच्चतम न्यायालय तक मामला गया है। नंबर पांच, आज तक कभी भी कांग्रेस ने जो हुआ, उसका किसी परोक्ष, दूर-दूर रुप से समर्थन नहीं किया है। अनेक भाजपा के कार्यकर्ता व नेता भी उन दंगों में अदालतों द्वारा दोषी पाए गए। लेकिन ये कहना कि कांग्रेस पार्टी एक सामूहिक रुप से पार्टी की हैसियत से दंगों में दोषी है, ये क्या सत्य है? मेरे पाँच बिंदुओं का आप एक विपरित कार्यांवित करिए, लागू करिए, 2002 में, गुजरात में। इन पाँच बिन्दुओं से कितने बिंदु हुए हैं बीजेपी में, मान्य मोदी जी द्वारा, माननीय अमित शाह जी द्वारा, माननीय बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा? तो कहीं संतुलन की आवश्यकता है। हर जगह राजनीतिक रोटियाँ पका कर और हर चीज पर एक वक्तव्य दे देने से असत्य सत्य नहीं हो जाता है। मैं चुनौती देता हूं मेरे पाँचों बिंदुओं पर ऑब्जेक्टिव रुप से, निष्पक्ष रुप से तथ्य रखें।

 

Sd/-

(Vineet Punia)

Secretary

Communication Deptt.

AICC

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